समस्त उत्तर भारत में काँगड़ा किला अपनी अलग ही पहचान रखता है | ज्यादा कर देशी इतिहासकार इसे हजारो साल पुराना महाभारत काल का बताते है | लेकिन किले के इतिहासिक पहलुओं की बात करे तो सबसे प्राचीन साक्ष्य केबल और केबल 9 -10 बी शताब्दी के ही मिलते है | दरसल त्रिगर्त राज्य कि दो राजधानियां थी एक जलंधर और एक नगरकोट काँगड़ा में | ऐसा माना जाता है की जलंधर से राजगदी को 9- 10 बी शताब्दी में काँगड़ा लाया गया |
जब 6 शताब्दी चीनी ट्रैवेलर ह्यूसेन त्सांग जलंधर आये तो राजा उतबी ने 3 महीनो तक उनकी मेहमान नाबाजी की ,इसके बाद ह्यूसेन त्सांग काँगड़ा न आते हुए सीधे कुल्लू चले गए | इसे से हम यह अनुमान लगा सकता है की काँगड़ा उस बक्त तक कोई खास अहमियत नहीं रखता था , इस लिए राजा उतबी ने ह्यूसेन त्सांग को काँगड़ा या काँगड़ा किले का दोरा नहीं करवाया यही नहीं ह्यूसेन त्सांग ने भी काँगड़ा या काँगड़ा किले का कोई उल्लेख नहीं किया |
9 -10 बी शताब्दी से पहले चम्बा और कुल्लू राज्य के इतिहास में भी हमे काँगड़ा किले का कोई जिक्र नहीं मिलता है | जो इस बात को सिद्ध करता है की काँगड़ा किला केवल 9-10 बी शताब्दी के बाद ही अस्तित्व में आया |
क्या काँगड़ा एक कमजोर रियासत थी ?
9 -10 बी शताब्दी में काँगड़ा में राज गदी हस्तांतरित होने पर भी काँगड़ा अगले कई सालो तक कला और साहित्य में कुछ ख़ास नहीं कर पाया , यहाँ के राजाओ ने ना तो चम्बा और कुल्लू के राज्य की तरह भब्य मंदिर वनवाये ना ही लम्बे लम्बे शिलालेख लिखबाये | केवल राजा संसार चाँद के समय में बशोली राज्य से पहाड़ी चित्र कला को काँगड़ा लाया बया |
कमजोर शाशन ?
काँगड़ा साम्राजय इतना कमजोर था की चम्बा राज्य ने धौलाधार को पार कर काँगड़ा के Rihlu, Chari Garoh और पठियार तक को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया था | यही नहीं काँगड़ा राज्य के शाशक इतने कमजोर थे की काँगड़ा रियासत को चम्बा की तरह एक जूट नहीं रख पाए , 11 बी शताब्दी से ही काँगड़ा राज्य छोटी छोटी रियासतों में टूटने लगा |
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